ग़ज़ल
राज़ खुल जाने के डर में कभी रहा ही नहीं
किसीसे, बात छुपाओ, कभी कहा ही नहीं
मैंने वो बात कही भीड़ जिससे डरती है
ये कोई जुर्म है कि भीड़ से डरा ही नहीं !
जितना ख़ुश होता हूं मैं सच्ची बात को कहके
उतना ख़ुश और किसी बात पर हुआ ही नहीं
किसीने ज़ात से जोड़ा, किसीने मज़हब से
मगर मैं ख़ुदसे किसी झूठ से जुड़ा ही नहीं
बुतों ने बहुत दिखाईं तमाम ऊंची जगहें
मगर मैं हंसता रहा, झाड़ पर चढ़ा ही नहीं
-संजय ग्रोवर
26-04-2018
राज़ खुल जाने के डर में कभी रहा ही नहीं
किसीसे, बात छुपाओ, कभी कहा ही नहीं
मैंने वो बात कही भीड़ जिससे डरती है
ये कोई जुर्म है कि भीड़ से डरा ही नहीं !
जितना ख़ुश होता हूं मैं सच्ची बात को कहके
उतना ख़ुश और किसी बात पर हुआ ही नहीं
किसीने ज़ात से जोड़ा, किसीने मज़हब से
मगर मैं ख़ुदसे किसी झूठ से जुड़ा ही नहीं
बुतों ने बहुत दिखाईं तमाम ऊंची जगहें
मगर मैं हंसता रहा, झाड़ पर चढ़ा ही नहीं
-संजय ग्रोवर
26-04-2018