गुरुवार, 28 जून 2012

इमेज बड़ी चीज़ है, मुंह ढंक के सोईए


लघु-व्यंग्य-कथा 





सुनो रिश्ता भेजा है उन्होंने, कह रहे हैं लड़के ने जो किया उसपर बड़े शर्मिंदा हैं, एक मौका दे दो पाप धोने का....

अजी, थोड़ी शर्म तो करो कहते हुए ! उसी कमीने बलात्कारी से शादी !!
कह रहे हैं छोटे से नही ंतो बड़े से कर दो, कुछ तो प्रायश्चित होगा...

एक ही ख़ानदान के हैं कमीने। उनमें क्या फ़र्क़ होना है !?

नहीं, नहीं, बड़ा काफ़ी उदारवादी स्वभाव का है। मेरा पुराना मिलना-जुलना है उससे।

ऐसी क्या उदारता दिख गयी तुम्हे उसमें ?

अरे बड़ा समझदार है, कहता है बलात्कार तो मूर्ख करते हैं, मेरे पास तो औरतें ख़ुद चलके आतीं हैं....

मतलब !? अजीब ही बात बता रहे हो आप तो ! पीछे एक रिश्ता आया था, लड़का कहता था जब मैं लोगों को अहिंसक तरीके से डराकर अपने काम निकाल सकता हूं तो मुझे हिंसा करने की क्या ज़रुरत ?

अरे नहीं, बड़ा सयाना है बड़ा भाई। सभ्यता, सुशीलता, व्यवहारिकता सब अच्छे से समझता है। कहता है कि देखिए साहब, एक आदमी रात में किसीके घर में घुसता है सामान चुराने, तो वह चोर या डाकू कहलाता है। वही आदमी अगर थोड़ा धैर्य धारण करना सीख ले, ज़रा-सी वाक्पटुता सीख ले, लोगों में किसी तरह यह विश्वास पैदा कर दे कि वह उनके सारे सही-ग़लत काम पलक झपकते करवा सकता है, और बाबाजी बनके कहीं डेरा जमा ले तो लोग तो ख़ुद ही भागे चले आते हैं अपने-आपको ठगवाने के लिए।

मेरे पल्ले ना पड़ रही आज आपकी बातें।

अगले की इमेज ऐसी है कि औरतें मक्खियों सी भिनकती हैं। पूरे दिन काम आता है औरतों के। बता रहा था कि कई दफ़ा कई औरतों के कई काम इसी छोटे भाई से करा देता हूं। न छोटे को पता लगने देता हूं न औरतों को। मुझे लगा कि ऐसा कहते समय एक आंख भी दबाई थी उसने...

लगा क्या, दबाई ही होगी ?

अरे पता नहीं, ईश्वर ने चेहरा-मोहरा कुछ ऐसा रचा है अगले का कि पता ही नहीं चलता दबाई कि नहीं दबाई....

कैसा गोल-मोल कर रहे हो मामले को ! दोनों भाईयों का चरित्तर तो फिर एक जैसा ही हुआ ना ?

इमेज तो अलग-अलग है ना। चरित्तर को कौन पूछता है ? देखा नहीं कैसे राधेलाल दस साल अपने पल्ले से लगाके चुपचाप औरतों के लिए काम करता रहा। एक दिन उसीकी बचाई चार औरते अपने उत्पीड़कों के साथ हो गयीं और राधेलाल को झूठा फंसा दिया....

कोई मजबूरी रही होगी औरतों की ! शायद किसीने डराया हो ? औरतों को तो समाज के साथ चलना होता है, तीज-त्यौहार, रीति-रिवाज करने होते हैं। सभी राधेलाल की तरह सब कुछ छोड़-छाडके तो नहीं रह सकते ना.....

जो भी हो, जब राधेलाल सब तरफ़ से हार गया, कोई समझनेवाला नहीं मिला तो एक दिन धैर्य खो बैठा और बहसबाज़ी के दौरान गर्मा-गर्मी में उनमें से एक पर हाथ छोड़ बैठा। अब कौन पूछता है उसके दस साल के चरित्तर को ? अब तो हर कोई कहता है, देखो जा रहा है औरतों का दुश्मन, हत्यारा, शोषक......अब इमेज तो गयी न उसकी ! चरित्तर को लेके चाटेगा अब ?

लोग इतने ही मूर्ख होते हैं क्या !?

मूर्ख ही नहीं, कई शातिर भी होते हैं उनमें। एक तीर से दो शिकार करते हैं। एक तरफ़ राधेलाल की इमेज का कुंडा हुआ दूसरी तरफ़ इसी उदाहण का उपयोग औरतों की इमेज ख़राब करने में भी कर रहे हैं कि देखो कैसी अहसान फ़रामोश होतीं हैं औरतें, अपनी मदद करनेवाले राधेलाल की क्या दुर्गति कर दी...



तो जनाब बहस जारी है। इंटरनेट पर, अख़बारों में, टी.वी. चैनलों पर......
शादी चाहे आक्रामक बलात्कारी से हो या उदारवादी आखेटक से, एक बात पक्की है कि अगर यहां रिश्ता होता है तो लड़की जाएगी उसी घर में और झेलेगी भी दोनों भाईयों को।
क्या कहा ? कोई और घर !
फ़िर आप ही कहते हैं कि सब घर उसीके बनाए हुए हैं!


-संजय ग्रोवर


सोमवार, 25 जून 2012

दवाईयां और बधाईयां


प्रतिष्ठा
मर्दाना और जनाना
दोनों तरह की कमज़ोरियों को
दूर करती है

पुरस्कार
खोयी हुई जवानी वापस लाते हैं

देखिए इस अखाड़े में
भांति-भांति के विद्रोही
नाना प्रकार की कसरतें कर रहे हैं

अभी गुरु लोग देने वाले हैं इन्हें
दीक्षा
कि कहां से कहां तक करना है विद्रोह
हमारी बताई लकीरों से इधर-उधर हुए तो
न तो कोई तुम्हे अख़बार में परसेगा
न चैनल पर जिमाएगा

हमारी मानोगे तो
जगह-जगह, तरह-तरह से
अडजस्ट करते हुए भी विद्रोही कहाओगे
ठीक वैसे ही जैसे
लौंडेबाज़ी करते हुए भी
ब्रहमचारी कहाते हैं पेलवान

हां हां क्यों नहीं
कैरियराकुल क्रांतिकारी तो पहले ही माने बैठे हैं
उन्हें तो बनना ही है विश्वसनीय विद्रोही
सामाजिक-मान्यता-प्राप्त-आवारा

उन्होंने देख ही लिया है
किस तरह टी.वी. का ऐंकर
हज़ारों साल पुराने विचारों में लिथड़े
लकड़बग्घों को
विस्फ़ोटक स्वर में
अनऑर्थोडॉक्स घोषित करता है

छोड़ो भी यार
तुम तो पीछे ही पड़ जाते हो
आधी ज़िंदगी तो तुम भी
इन्हीं खोखलों को ठोस मानते रहे
कमज़ोरों को बताते रहे ताक़तवर
इनकी तथाकथित उपलब्धियों से घबराकर
अपराध बोध में जलते रहे
अब ख़ुश होवो कि
वक्त रहते पता चल गया
एक के सर पर चढ़कर ही
दूसरा बड़ा कहलाता है

इधर कैरियर बनता है
उधर बग़ावत पूरी होती है

बधाई हो श्रीमान/मति/पति/सती इत्यादि
अब आप सेहतमंद हो गए हैं

-संजय ग्रोवर

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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